नवगीत
नेह दीपक तुम जलाओ, आस दीपक हम जलाएं। रज रश्मियों को नेह की, अब उदासी छल न जाए, और ख्वाबों का उजाला, व्यर्थ ही अब हो न जाए। हम उदासी के तमस को, हृदय अम्बर से हटाएं। नेह दीपक तुम जलाओ, आस दीपक हम जलाएं। आँधियाँ फिर अब दुखों की, आज क्यूँ मुखरित हुई हैं? निज कर्म में हम आस रख, नींव गढ़ देंगे सुखों की। डबडबाती रश्मियों की, अस्मिता को हम बचाएं। नेह दीपक तुम जलाओ, आस दीपक हम जलाएं। खुशियों की रश्मि उगाएं, प्रीत मंडित कर सवेरा। और अपनी इस धरा पर, शांति का हर पल बसेरा। सब दुखों को भूल कर अब, प्रीत के शुभ गीत गाएं। नेह दीपक तुम जलाओ, आस दीपक हम जलाएं। डॉ प्रतिभा गर्ग ©️
Home
Unlabelled
नवगीत (Navgeet): By Dr. Prathibha Garg
No comments:
Post a Comment