बीती रात
आंखें मचली,मैंने एक सपना देखा था,
हाथों में ढेर सारे मोती
तुमने आवाज देकर कहा था -आओगे क्या ??
जबाब में मैंने कहा था- इस ख्बाबी मौसम में कहा ??
उसी रोज मन के धागे से वो मोती पिरोय गए थे,
उसी रोज सुबह-
तुम मुस्कुरा रही हो,
हवा में खुशबू फ़ैल रही है,
महसूस हुआ कि छोटी हथेलियों में हथेली को छुआ,
और मेरी सोच उस बीती रात की तरफ दौड़ गई,
जब तुम्हारे ख्याल मन में फैली ख़ामोशी को कुरेद रहे थे.....
लेखक- रोहित कुमार वर्मा
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