बीता हुआ कल
कभी -कभी मुझे याद आ जाता है, तेज हॉर्न की आवाजें और चलती हुई गाड़ियों की सांय सांय की आवाज लगता है मैं खुद ना जाने कहाँ पहुँच गई थी, इन्हीं आवाजों ने मेरी यादों को घसीट लिया था तैरती हुई "तुम्हारी यादों" में.......कितना अच्छा होता था न साथ तुम्हारा, तुम्हारी बातें और मुझे बात-बात पर यूं परेशान करने की आदत, कभी कभी तो मैं समझ ही नहीं पाती थी तुम्हारे दिल ही बात... रोहन...तुम्हारा बेबजह यूँ कॉस्मेटिक की शॉप पर खड़े होकर सामान दिलाने की जिद, पानी पूरी के रेडी पर तीखी पानी पुरी खिलाने की जिद, तुम्हारी एक अलग ही दुनिया होती थी हैं ना...मैं सोच ही रही थी कि पिताजी ने हाथ पकड़ कर जोर से खींचा..."इंदु"...पागल हो गई हो क्या?..... क्या हुआ है यूँ बीच चलती गाड़ियों के बीच और सड़क पर बहुत ट्रैफिक होता है न...इतना कहकर वो चुप हो गए थे...और उन्होंने खींच लिया था, "मुझे" एक छोटी दुनिया की यादों से..
बस यही कहानी बिखरी रही होगी डायरी के पन्नो पर ......
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